आज भी याद आती है उनकी जब दरख्तों से पत्ते साथ छोड़ देते
कुछ दूर साथ चलकर जो अपनों का हाथ छोड़ देते है
हम तो फिर भी दिल में उनकी यादों को साथ रखते है
एक वो ही हैं जो नजरों के सामने आते ही मूह फेर लेते है
आज भी याद आती है उनकी जब दरख्तों से पत्ते साथ छोड़ देते
कभी एक पल भी हमारे बिना वो जी नहीं पते थे
आज अकेले ही मंजिलों का मीलों सफ़र तय करते है
हम तो आज भी इंतजार कर रहे उस पल का
जब कोई हमारी गली में उनको बापस लेकर आएगा
उसका क़र्ज़ तो हम अदा न कर पायंगे बस दिल ही दिल में
उसके एहसानों को रखकर प्यार के साथ याद किय जायेंगे