जब में १० अगस्त २००९ को जबलपुर से भोपाल आया था तो मन में डर था यदि काम अच्छा नहीं कर पाया तो कहीं का नहीं रह जाऊँगा लेकिन अपने आप पर विस्वास और कुछ कर दिखाने के लिए ये रिस्क ली अबमैं राहत महसूस कर रहा हूँ क्योंकि शहर को जान ने लगा हूँ भोपाल और जबलपुर के लोगों में बहुत अंतर है यहाँ मिलनसार और मददगार ज्यादा है तो जबलपुर मैं इसका प्राटिस्ट कम है यहाँ कामं की वैल्यू है न की चापलूसों की जमात की बतोर फोटोजर्नलिस्ट एक पहचान बन रही है जिसकी सुरूआत अच्छी हुई कभी सोचता हूँ की यही काम जबलपुर मैं करता था लेकिन वो नाम नहीं मिला और न ही काम दिखाने का मौका 8 कॉलम फोटो नाम सहित इससे पहले कभी भी नहीं लगे जबलपुर नव भारत , देनिक भास्कर ,हरी भूमि का मेरा अनुभव बहुत बूरा रहा हई जहाँ अच्छे लोगों के साथ बुरे ज्यादा मिले लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी और अपना काम करता रहा मेरा आलोचकों की संख्या बहुत है क्योंकि मैं अपने काम में किसी की नहीं सुनता था रिपोर्टर प्रेस का काम कम अपनी नौकरी ज्यादा करवाते थे जो की मुझे मंजूर नहीं था भोपाल की एक और खासियत यहाँ फोटो ग्राफर और रिपोर्टर में समानता हई जबकि जबलपुर में फोटो ग्राफर को रिपोर्टर से जूनियर माना जाता है चाहे वो रिपोर्टर की उम्र का अनुभव रखता हो इन्हीं बातों से परेशान था में पर उपर वाले ने मेरी सुन ली और मुझे आज भोपाल में काम करने का मौका दिया