Saturday, April 24, 2010

दरख्त

आज भी याद आती है  उनकी जब दरख्तों से पत्ते साथ छोड़ देते
कुछ  दूर  साथ  चलकर  जो  अपनों  का  हाथ  छोड़  देते है
हम  तो  फिर  भी  दिल  में  उनकी  यादों  को  साथ  रखते  है
एक  वो  ही  हैं  जो  नजरों के  सामने  आते  ही  मूह  फेर  लेते  है
आज भी याद आती है उनकी जब दरख्तों से पत्ते साथ छोड़ देते
कभी  एक  पल  भी  हमारे  बिना वो जी नहीं पते थे 
आज  अकेले ही मंजिलों का मीलों सफ़र  तय  करते है
हम तो आज भी इंतजार कर रहे उस पल का 
जब कोई हमारी गली में उनको बापस लेकर आएगा 
उसका क़र्ज़ तो हम अदा न कर पायंगे बस दिल ही दिल में 
उसके एहसानों को रखकर प्यार के साथ याद किय जायेंगे